Ritu Poddar
(3 min read)
दिल पर बोझ लिए चलने की आदत सी हो गई है.
डर लगता है, कहीं सारा हट गया तो ज़मीन पर पाँव नही टीका पाएँगे.
वो सफेद बादलों सी हँसी, आती हुई को रोक लेते हैं,
गुबार ज़ुबान पे लाते लाते खुदको टोक देते हैं.
अंदर जमा मैल, कई बार बूँद बन आ जाता है,
पर हम झट से दरवाज़ा बंद कर देते हैं,
कहीं किसी के सामने शर्मिंदा ना कर दे.
दिल पर बोझ लिए चलने की आदत सी हो गई है.
डर लगता है, कहीं सारा हट गया तो ज़मीन पर पाँव नही टीका पाएँगे.
हल्का सा दर्द हर वक़्त महसूस करते हैं,
हल्की सी नमी हर वक़्त रहती है.
अक्सर खिड़की से दूर कोई इमारत ताकते हैं
और सोचते हैं, इनके अंदर जो चेहरे बसते हैं,
क्या वो असली हँसी हंसते होंगे?
वो परिंदा जो उड़े जा रहा है, क्या उसके दिल पर भी कोई बोझ होगा?
दिल पर बोझ लिए चलने की आदत सी हो गई है.
डर लगता है, कहीं सारा हट गया तो ज़मीन पर पाँव नही टीका पाएँगे.
A fan of Ruskin Bond, Ritu loves all things simple. Simple words, simple stories, simple poetry. A Technical Writer by profession, and a Writer by passion. She believes that if she stops writing, she will die.
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Yet again, you mesmerized me with the way you have woven a complicated and harsh reality with the choice of simplest words.
Beautifully painful!
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हर किसी की व्यथा है। पर अगर सोचें तो अच्छा ही होगा, ज़मीन पर पाँव नहीं अड़ा पाएंगे तो उड़ जाएंगे आसमान में, आज़ाद हो जाएंगे
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