Soulgasm

To Quill the Mocking World

अल्मोड़ा


Shantanu Jain
(5 min read)

almora

बीते बारह वर्षों से ‘अल्मोड़ा’ मेरे लिए मात्र एक बिंदु रहा है भारत के नक़्शे पर ! आज अवसर मिला है इस देवभूमि पर पाँव रखने का।  जब-जब अल्मोड़ा ने मेरे मानस – पटल पर दस्तक दी है, तब तब समय का तेज़ घूमता चक्र कुछ क्षणों के लिए उल्टी दिशा में चलने लगता है और मुझे कक्षा दस में ले जाता है जब शिवानी ने कृष्णकली का परिचय मुझसे कराया था।  अल्मोड़ा में ही जन्मी थी कृष्णकली – चंचलता और गाम्भीर्य का अप्रतिम तारतम्य रखती वह श्यामवर्णा ‘कली’ जो शायद इन्ही पहाड़ियों में पली – बड़ी थी, जिसने इसी ठंडी हवा में साँस लेना सीखा था, जिसने नीचे बहती कोसी से अपने आंसू साझे थे।  आज उसी कोसी, उसी ठंडी हवा, उन्ही पहाड़ियों में बैठा यह सब लिख पा रहा हूँ। कल यहाँ पहुँचते –  पहुँचते बेचारी शाम के कई पहर बीत चुके थे और भास्कर बाबू राह तकते – तकते सर्दी की ठिठुरती रात से बचने के लिए जल्दी ही अपने घर लौट चुके थे । एक तो सर्दी, ऊपर से दिसम्बर ! मौसमों की बिरादरी में इससे अच्छा युग्म क्या ही हो सकता है ! कुछ अलग – सा … असल में कुछ नहीं, बहुत अलग – सा लगाव रहा है सर्दियों से मुझे –  बचपन से, हमेशा से ! एक  अलग – सी महक घुली हुई पाता हूँ दिसम्बर की हवा में।  लगता है मानो मेरी ही रूह का कोई कायनाती हिस्सा मुझसे मिलने आता है इस महीने।  और अब जबकि मैं यहाँ हूँ, अल्मोड़ा में, तो सोने पे सुहागा वाली बात हो गयी है। पहाड़ों की ठिठुरन की बात ही कुछ और है।

इस एक पल जब मैं कांच की दीवार के उस पार देख रहा हूँ तो दूर – दूर तक एक सन्नाटा पसरा हुआ है।  कुछ रोशनियों के बिंदु अल्मोड़ा शहर के हैं और कुछ शायद रानीखेत के।  सच ! ऐसा नयनाभिराम दृश्य विरले ही देखने को मिलता है।  यूँ तो सन्नाटे और शांति को एक नहीं मानता मैं।  ‘सन्नाटा’ शब्द मेरे लिए भयावहता का शब्द-चिह्न है और ‘शांति’ मेरे लिए सुकून का पर्याय है पर इस एक क्षण जब मैं घाटियों में बिखरी इन रोशनियों को टिमटिमाते देख रहा हूँ तो लग रहा है मानो प्रकृति और भाषा ने आपस में साझेदारी से इन दो शब्दों को एक दूसरे का पर्यायवाची बना दिया है। शांति वाली भयावहता ! इन घाटियों में न जाने कितने ही राज़, कितनी ही चीत्कारें, कितनी ही कहानियाँ दबी होंगी, उगी होंगी – पर फिर भी कितनी मौन हैं ये घाटियाँ, ये पहाड़, ये रोशनियाँ ! इस शांति, इस सुकून, इस डर, इस भयावहता, इस सन्नाटे में न जाने क्यों साँस लेने का मन करता है; यहाँ की सर्द बयार में घुली गंध को अपनी साँस में मिलाने का मन करता है।

कल से अब तक जितने भी रास्ते नापे हैं, जितनी भी पगडंडियाँ लाँघी हैं, जितने भी मोड़ आये हैं – अपनी रगों में दौड़ते खून में कभी शिवानी तो कभी पन्त के किरदारों को घुला हुआ पाया है।  किरदारों को ही क्यों, मैंने शायद साक्षात शिवानी को, सुमित्रानंदन को, नागार्जुन को अपने सामने महसूस किया है।  यहीं कहीं किसी चीड़ के नीचे शिवानी ने ‘कली’ को गढ़ा था और यहीं किसी मोड़ पर कली अपने प्रभाकर से टकराई थी और यहीं कोसी के सलिल ने शायद कली को मुक्ति दी थी।

सोचता हूँ, क्यों इतना समय लगा दिया मैंने यहाँ पाँव रखने में ! क्यों इतना समय लगा दिया यहाँ की नीरवता को पीने में, निर्जनता को पीने में ! क्यों इतना समय लगा दिया दूर स्वर्णाभ शिखरों के त्रिशूल को छूती मीठी गुनगुनी धूप चखने में।  यहाँ कहीं बैजनाथ हैं तो कहीं चिट्ठियों में उतरी ख्वाहिशों को पूरा करने वाले गोलू तो कहीं जागेश्वर ! शायद शिवानी की तरह शिवानी के शिव की भी प्रिय भूमि रही होगी यह ! काश कुछ यूँ सा हो कि मेरी रूह का वह कायनाती हिस्सा जो मुझसे दिसम्बर में मिलने आता है, मुझे हमेशा के लिए अल्मोड़ा की रूह में बसा जाए।  फिर तो न कभी मैं शिव से अलग हो पाऊंगा, न शिवानी से और न ही शिवानी की कृष्णकली से !


 

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A wanderer and teetotaler by choice (what an irony!), Shantanu finds solace in colors and words. He is mad about IISc, his post grad college and teaching. Hindi is what he feels most associated with , the credit of which he gives to “her”.

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(Click here to read our first book “Mirrored Spaces” : A poetry and art anthology in English and Hindi with contributions from 22 artists)

9 comments on “अल्मोड़ा

  1. ashok joshi
    December 26, 2016

    सुंदर शैली

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  2. Rishabh Arora
    December 26, 2016

    Beautifully written, good work keep it up.

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  3. gagan mishra
    December 27, 2016

    Well written shantanu, you have bring out so much in so few words.
    Awesome cover pic also. Keep writing .

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  4. Ritu Poddar
    December 27, 2016

    Bahut hi sundar Shantanu 🙂 khoobsurat chitra ukere hain shabdon se..

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  5. Su
    December 27, 2016

    the wandering soul and the words in the air…beautiful!
    🙂

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  6. sonidivya
    December 29, 2016

    लेखन शैली और विचार, हमेशा की तरह हैं, बेहतरीन। जो बात बहुत सुन्दर लगी वो है कि किस तरह सन्नाटे और शांति को पहले अलग किया और फिर बड़ी मासूमियत से एक दूसरे में मिला कर पहाड़ों में दफना दिया। बहुत खूब।

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  7. Abhilasha
    December 30, 2016

    Superb. …loved it☺☺.. keep writing 😊😊😊😊

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  8. Ashish Sharma
    January 2, 2017

    Behad Umda Shantanu Ji …

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  9. coolvivekgupta
    January 8, 2017

    Superbly articulated

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This entry was posted on December 25, 2016 by in Hindi, Non-Fiction and tagged .

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